रविवार, 7 फ़रवरी 2010
नया वर्ष
इक महती उपलब्धि
उस चीज की
जो स्वयं गतिवान है !
इक गहरी उतेजना
उसके आने की
जिसको आना ही है !
ये समय नहीं है -
अपने पीछे देखने का ,
न ही आगे आनेवाले
ढकोसलों को मापने का
ये समय है -
एन्जोए करने का !
हर उस तेज़ चीज़ को
हम हड़प कर जायेंगे
हर पानी हमारे लिए
एक खास शराब है ,
वो जो भी खारा है
हमें प्यारा है !
शव के सिरहाने रखी
ज़िन्दगी -
धीरे - धीरे सुलगती हुई बाती है
औ' सारे के सारे रंगों का
अबूझ कफ़न ओढे है !
नहीं , ये समय नहीं है
न ही उसकी आहट ,
जिसको हम माप सके
या की अपनी ही बनाई
खिड़की से छांक सकें !
एक रोकेट तेज़ी से जाता है
कहीं दूर कोई सीटी बजाता है ,
कोई नाचता कोई गाता है !
पूरा का पूरा माहौल
इस ठण्ड में
खिलंदर बन जाता है !
मुझे याद है -
बचपन में ,
हम एक चकरी बनाते थे
पत्तों की
औ' उसे लेकर हवा के विपरीत
तेज़ी से दौड़ते थे
वो घूमती थी
हम खुश होते थे !
वो समय की खूबी थी
या हमारी मेहनत की ,
की चकरी तेज़ी से घूमती थी
मुझे नहीं पता ;
हाँ ! इतना जरुर पता है
इस खेल की रेलमपेल में
सब शामिल हैं !
इस कड़ाके की टंड में
जो आइस्क्रेम खायेगा ,
टीक वही -
"सर्विवल ऑफ दी फिटेस्ट "
बन पायेगा ,
अब कोई भूख से नहीं
कम खाने की इच्छा से
मारा जायेगा !!!
अभिषेक पाण्डेय
०१/०१/२००३
न्यू डेल्ही
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sundar kavita.....
जवाब देंहटाएंthanks!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना!!
जवाब देंहटाएं..thanks man!!!
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