हम मिले-
बड़े सलीके और शिष्टाचार के साथ।
हमने कहा- कितनी खुशी हुई
आपको इतने सालों बाद देखकर !
पर हमारे भीतर थककर सो गया था बहुत-कुछ।
घास खा रहा था शेर,
बाज ने अपनी उड़ान छोड़ दी थी।
मछलियाँ डूब गई थीं और भेड़िए पिंजरों में बन्द थे।
हमारे साँप अपनी केंचुल बदल चुके थे।
मोरों के पंख झड़ गए थे।
उल्लू तक नहीं उड़ते थे हमारी रातों में।
हमारे वाक्य टूट कर ख़ामोश हो गए।
असहाय-सी मुस्कान में खो गयी
हमारी इंसानियत
जो नहीं जानती कि आगे क्या कहे
बड़े सलीके और शिष्टाचार के साथ।
हमने कहा- कितनी खुशी हुई
आपको इतने सालों बाद देखकर !
पर हमारे भीतर थककर सो गया था बहुत-कुछ।
घास खा रहा था शेर,
बाज ने अपनी उड़ान छोड़ दी थी।
मछलियाँ डूब गई थीं और भेड़िए पिंजरों में बन्द थे।
हमारे साँप अपनी केंचुल बदल चुके थे।
मोरों के पंख झड़ गए थे।
उल्लू तक नहीं उड़ते थे हमारी रातों में।
हमारे वाक्य टूट कर ख़ामोश हो गए।
असहाय-सी मुस्कान में खो गयी
हमारी इंसानियत
जो नहीं जानती कि आगे क्या कहे
विस्साव शिम्बोर्स्का
(बीतती सदी में )
अनुवाद - विजय अहलूवालिया
aadmi ki ekdam sachi vidambana ban gayi hai aajkal ye sthiti.
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