शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009
आग
आग का पेट बड़ा है!
आग को चाहिए हर लहजा चबाने के लिए
खुश्क करारे पत्ते,
आग कर लेती है तिनकों से गुजारा लेकिन
आशियानों को निगलती है निवालों की तरह
आग को सब्ज हरी टहनियां अच्छी नहीं लगतीं
ढूंढती है कि कहीं सूखे हुए जिस्म मिलें!
उसको जंगल की हवा रास आती है फिर भी
अब गरीबों की कई बस्तियों पर देखा है हमला करते,
आग अब मंदिरों-मस्जिद की गजा खाती है!
लोगों के हाथों में अब आग नहीं-
आग के हाथों में कुछ लोग हैं अब
गुलजार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें