अजय यादव
जब भी कोई कहता है
जब भी कोई कहता है
'सुनो आदमी'
समझ में आता है
कि अपने भीतर के
जंगल और जानवर को मारो,
जब भी कोई कहता है
'बनो आदमी'
समझ में आता है
कि मेरे भीतर
कितना बचा है
जंगल और जानवर?
लेकिन
एक फर्क है
आदमी और जानवर में
जानवर,
भविष्य की योजनाएं तो बनाता है
लेकिन नहीं रख सकता यादों में
किसी को सहेजकर
और मैं,
उल्टे पांव चलती इस दुनियां में
जो मुझे अच्छा लगा
उसे भूलना नहीं चाहता......
बताइएं,
कैसे हैं आप?
swagat hai
जवाब देंहटाएंthik hun. narayan narayan
जवाब देंहटाएंaachi kavita he
जवाब देंहटाएंnamaskar mitr,
जवाब देंहटाएंsaari kavitayen padhi , sab ki sab behatreen hai .. aapki kavitao me jo bhaav hai ,wo bahut hi gahre hai ..
aapko badhai .. aaj ke aadmi ke upar likhi gayi ye kavita acchi lagi ..
dhanywad.
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
Vijay