शनिवार, 18 अप्रैल 2009

वो सुबह कभी तो आएगी

माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों कि कीमत कुछ भी नहीं
मिटटी का भी है मोल मगर इंसानों कि कीमत कुछ भी नहीं
जब इंसानों कि कीमत झूठे सिक्कों पे न तौली जायेगी
वो सुबह कभी तो आएगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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