शुक्रवार, 19 जून 2009

एक ग़ज़ल

तंग गलियों से निकलकर, आसमान की बात कर
राम को मान और रहमान की भी बात कर

अपने बारे में हमेशा सोचना है ठीक पर
चंद लम्‍हों के लिए, आवाम की भी बात कर

बहारों के मौसम सभी को रास आते हैं मगर
सदियों से सूने पडे़, बियाबान की भी बात कर

तरक्कियां सबके लिए होती नहीं हैं एक-सी
अंतिम सीढ़ी पर खड़े, इंसान की भी बात कर

सिमट गई दुनिया लगती है, शहरों के ही इर्द-गिर्द
गावों में बसने वाले, हिन्‍दुस्‍तान की भी बात कर

टाटा-बिरला-अंबानियों के, कहो किस्‍से खूब पर
आत्‍महत्‍या कर रहे, किसान की भी बात कर

ख्‍वाब अपने कर सभी पूरे मगर
जिन्‍दा रहने के किसी अरमान की भी बात कर

भागीरथ

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