बुधवार, 9 दिसंबर 2009

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर

कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी

उसी नींद में कसमसा कसमसाकर

सराहने से तकिये गिराती तो होगी

वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की खामोशियों में
मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी
चलो ख़त लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियाँ कंप-कंपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी

मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दांतों में उंगली दबाती तो होगी
जुबां से कभी उफ़ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पाँव पड़ते तो होंगे
दुपट्टा ज़मीन पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी

7 टिप्‍पणियां:

  1. yaar maine bahut talashane ki koshish ki lekin pata nahi chal paaya... ye ek purani film ka gaana hai jisse mere ek dost suna karte the... ek din aise mil gayi to unhe mail par bheja aur blog par bhi post kar diya....
    baad me publish post dekha to laga ki jinhone ye kavita nahi padhi-ya suni hogi wo isse meri samajh lega.... aur hua bhi aisa hi..

    agar tumhe pata chale to theek kar dena

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  2. जनाब, अगर ये कविता आपकी नहीं भी है तो भी ये आपके स्थिति पर सटीक बैठती है. और आपने फोटो भी एकदम सही लगा रखा है. भगवन आप दोनों को लम्बी उम्र प्रदान करे. :-)

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  3. और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की ये कविता कमाल अमरोही साहब की है. सन १९७७ में खय्याम साहब के धुन पर मोहम्मद रफ़ी ने अपनी सुरीली आवाज़ में ढाला था. फिल्म का नाम था "शंकर हुसैन". आप इस गाने को यहाँ देख सकते है:
    http://www.youtube.com/watch?v=18OLz4HB150

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  4. धन्यवाद मित्र,
    जानकारी पुख्ता करने के लिए भी धन्यवाद

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