बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा कसमसाकर
सराहने से तकिये गिराती तो होगी
वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की खामोशियों में
मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी
चलो ख़त लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियाँ कंप-कंपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दांतों में उंगली दबाती तो होगी
जुबां से कभी उफ़ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पाँव पड़ते तो होंगे
दुपट्टा ज़मीन पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
excelent poeam
जवाब देंहटाएंhow to force it
janab is masoom see kavita ke kavi kaun hain.
जवाब देंहटाएंyaar maine bahut talashane ki koshish ki lekin pata nahi chal paaya... ye ek purani film ka gaana hai jisse mere ek dost suna karte the... ek din aise mil gayi to unhe mail par bheja aur blog par bhi post kar diya....
जवाब देंहटाएंbaad me publish post dekha to laga ki jinhone ye kavita nahi padhi-ya suni hogi wo isse meri samajh lega.... aur hua bhi aisa hi..
agar tumhe pata chale to theek kar dena
theek hai guru.
जवाब देंहटाएंजनाब, अगर ये कविता आपकी नहीं भी है तो भी ये आपके स्थिति पर सटीक बैठती है. और आपने फोटो भी एकदम सही लगा रखा है. भगवन आप दोनों को लम्बी उम्र प्रदान करे. :-)
जवाब देंहटाएंऔर आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की ये कविता कमाल अमरोही साहब की है. सन १९७७ में खय्याम साहब के धुन पर मोहम्मद रफ़ी ने अपनी सुरीली आवाज़ में ढाला था. फिल्म का नाम था "शंकर हुसैन". आप इस गाने को यहाँ देख सकते है:
जवाब देंहटाएंhttp://www.youtube.com/watch?v=18OLz4HB150
धन्यवाद मित्र,
जवाब देंहटाएंजानकारी पुख्ता करने के लिए भी धन्यवाद