शनिवार, 19 दिसंबर 2009

क्या हम आजाद हैं?

वक्त ऐसा आ गया है
आलम ऐसा छा गया है
झाँक कर अपने गिरेबान में

आओ ख़ुद से पूछ लें
क्या हम आजाद हैं?

क्या है जिंदगी में अमन चैन?
क्यूँ दो शाम की रोटी के लिए तरसे नैन?
क्या अपना हक मिलता है यहाँ?
लोकतंत्र चलता है जहाँ?

आओ ख़ुद से पूछ लें
क्या हम आजाद हैं?

भुखमरी बेरोज़गारी और अन्याय से क्या अछूते हैं हम?
क्या ठोस कदम उठाये सरकार ने जिससे हो हमारी परेशानी कम?
काम होता है यहाँ और योजनायें बनती भी हैं
पर क्या कभी सोचा है वो क्यूँ लागू होती नहीं?

आओ ख़ुद से पूछ लें
क्या हम आजाद हैं?

क्यूँ वो सुनकर भी हमारी बात करते अनसुनी?
क्यूँ हमारा दर्द उनको दर्द देता है नहीं?
क्यूँ हमारे आसुओं का होता कोई असर नहीं?

आओ ख़ुद से पूछ लें
क्या हम आजाद हैं?

वक्त ऐसा आ गया है
आलम ऐसा छा गया है
झाँक कर अपने गिरेबान में

आओ ख़ुद से पूछ लें
क्या हम आजाद हैं?

हर एक इंसान में है ज़ोर कर लो गौर
अब करे न राज हमपे कोई और
अपने हाथों में ले लो सत्ता की डोर

और हर तरफ़ हो यही शोर
"हाँ हम आजाद हैं.....हाँ हम आजाद हैं...."

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