ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।
ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
वो सब-के-सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा।
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है,
कि इन्सानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा।
कई फ़ाके बिताकर मर गया जो उसके बारे में,
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।
यहाँ तो सिर्फ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा।
चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।
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दुष्यंत कुमार
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा
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यहाँ तो सिर्फ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
जवाब देंहटाएंखुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा।
दुष्यंत जी की कालजयी गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद
वीनस केसरी
sengar jee,
जवाब देंहटाएंapke aise hi sahyog ki apeksha hai. behatareen kavita padwayi hai aapne.
kya kahen ashaar chup hain , kalam ko hee kuchh kahna padaa hoga
जवाब देंहटाएंaapke tippni form mei hindi mein likha paste nahee ho pa rahaa .