बुधवार, 5 मई 2010

दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी

दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी

दुनिया का सबसे गैब इन्सान
कौन होगा
सोच रहा हूँ उसकी माली हालत के बारे में
नहीं! नहीं !! सोच नहीं
कल्पना कर रहा हूँ

मुझे चक्कर आने लगे हैं
ग़रीब दुनिया के गंदगी से पते
विशाल दरिद्र मीना बाजार का सर्वे करते हुए
देवियों और सज्जनों
'चक्कर आने लगे हैं "
यह कविता की पंक्ति नहीं
जीवनकंप है जिससे जूझ रहा इस वक़्त
झनझना रही है रीढ़ की हड्डी
टूट रहे हैं वाक्य
शब्दों के मलबे में दबी-फँसी मनुजता को
बचा नहीं पा रहा
और वह अभिशप्त, पथरी छायाओं की भीड़ में
सबसे पीछे गुमसुम धब्बे-जैसा
कौन-सा नंबर बताऊँ उसका
मुझे तो विश्व जनसँख्या के आकड़े भी
याद नही आ रहे फ़िलवक़्त
फेहरिस्तसाजों को
दुनिया के कम- से -कम एक लाख एक
सबसे अन्तिम ग़रीबों की
अपटुडेट सूची बनाना चाहिए
नाम, उम्र, गांव, मुल्क और उनकी
डूबी-गहरी कुछ नहीं-जैसी संपति के तमाम
ब्यौरों सहित

हमारे मुल्क के एक कवि के बेटे के पास
ग्यारह गाडियाँ जिसमें एक देसी भी
जिसके सिर्फ़ चारों पहियों के दाम दस लाख
बताए थे उसके आश्वर्य-शानो-शौकत के एक
शोधकर्ता ने
तब भी विश्व के धन्नासेठों में शायद हिन्
जगह मिले
और दमड़िबाई को जानता हूँ मैं
ग़रीबी के साम्राज्य के विरत रूप का दर्शन
उसके पास कह नहीं पाऊंगा जुबान गल जाएगी
पर इतना तो कह सकता हूँ वह दुनिया की
सबसे ग़रीब नहीं

दुनिया के सत्यापित सबसे धनी बिल गेट्स
का फ़ोटो
अख़बारों के पहले पन्ने पर
उसी के बगल में जो होता
दुनिया का सबसे ग़रीब का फ़ोटू
तो सूरज टूट कर बरस पड़ता भूमंडलीकरण की
तुलनात्मक हकीकत पर रोशनी डालने के लिए

पर कौन खींचकर लाएगा
उस निर्धनतम आदमी का फोटू
सातों समुन्दरों के कंकडों के बीच से
सबसे छोटा-घिसा-पिटा-चपटा कंकड़
यानी वह जिसे बापू ने अंतिम आदमी कहा था
हैरत होती है
क्या सोचकर कहा होगा
उसके आसूँ पोंछने के बारे में
और वे आसूँ जो अदृश्य सूखने पर भी बहते
ही रहते हैं

क्या कोई देख सकेगा उन्हें
और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक
न अमीरों की न गरीबों की गिनती में
और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक
न अमीरों की न गरीबों की गिनती में
मैं धोबी का कुत्ता प्रगतिशील
नीचे नहीं जा सका जिसके लिए
लगातार संघर्षरत रहे मुक्तिबोध
पांच रूपये महीने की ट्यूशन से चलकर
आज सत्तर की उमर में
नौ हजार पाँच सौ वाली पेंशन तक
ऊपर आ गया
फ़िर क्यों यह जीवनकंप
क्यों यह अग्निकांड
की दुनिया का सबसे गरीब आदमी
किस मुल्क में मिलेगा
क्या होगी उसकी देह-सम्पदा
उसकी रोशनी, उसकी आवाज-जुबान और
हड्डियाँ उसकी
उसके कुचले सपनों की मुट्ठीभर राख
किस हंडिया में होगी या अथवा
और रोजमर्रा की चीजें
लता होगा कितना जर्जर पारदर्शी शरीर पर
पेट में होंगे कितने दाने
या घास-पत्तियां
उसके इअर्द-गिर्द कितना घुप्प होगा
कितना जंगल में छिपा हुआ जंगल
मृत्यु से कितनी दुरी पर या नजदीक होगी
उसकी पता नहीं कौन-सी सांस
किन-किन की फटी आंखों और
बुझे चेहरों के बीच वह
बुदबुदा या चुगला रहा होगा
पता नहीं कौन-सा दृश्य, किसका नाम

कोई कैसे जान पाएगा कहाँ
किस अक्षांश-देशांश पर
क्या सोच रहा है अभी इस वक्त
क्या बेहोशी में लिख रहा होगा गूंगी वसीयत
दुनिया का सबसे गरीब आदमी
यानि बिल गेट्स की जात का नही
उसके ठीक विपरीत छोर के
अन्तिम बिन्दु पर खासता हुआ
महाश्वेता दीदी के पास भी
असंभव होगा उसका फोटू
जिसे छपवा देते दुनिया के सबसे बड़े
धन्नासेठ के साथ
और उसका नाम
मेरी क्या बिसात जे सोच पाऊं
जो होते अपने निराला-प्रेमचंद-नागार्जुन-मुक्तिबोध
या नेरुदा तो सम्भव है बता पाते
उसका सटीक कोई काल्पनिक नाम
वैसे मुझे पता है आग का दरिया है ग़रीबी
ज्वालामुखी है
आँधियों की आंधी
उसके झपट्टे-थपेडे और बवंडर
ढहा सकते हैं
नए- से -नए साम्राज्यवाद और पाखंड को
बड़े- से- बड़े गढ़-शिखर
उडा सकते पूंजी बाजार के
सोने-चांदी-इस्पात के पुख्ता टीन-टप्पर

पर इस वक़्त इतना उजाला
इतनी आँख-फोड़ चकाचौंध
दुश्मनों के फ़रेबों में फँसी पत्थर भूख
उन्हीं की जे-जयकार में शामिल
धड़ंग जुबानें
गाफ़िल गफ़लत में
गुणगान-कीर्तन में गूंगी
और मैं तरक्की की आकाशगंगा में
जगमगाती इक्कीसवीं सदी की छाती पर
एक हास्यास्पद दृश्य
हलकान दुनिया के सबसे ग़रीब आदमी के वास्ते

रविवार, 2 मई 2010

हम तो अपनी बावड़ी लेंगे


बावड़ी बावड़ी बाव बावड़ी
सभी कलेक्टर सभी कामिसनर, सभी मिनिस्टर मेरे हैं
दवाखाना पुलिस खाना कोर्ट बारिस्टर मेरे हैं
काहे को फिर धक्के खाऊ, धक्के नाही होना रे
हम तो अपनी बावड़ी लेंगे
बावड़ी हमको होना रे

यह योजना वोह स्कीमा, तन्दानो पे तन्दाने
घपलो की कवाल्ली यारों, घपलो की ही है ताने
अरे ऐसी ताने तन्दानो में, हमको नहीं खोना रे
हम तो अपनी बावड़ी लेंगे
बावड़ी हमको होना रे
बावड़ी बावड़ी बाव बावड़ी

अरे, जान से प्यारा हिंद हमारा, डेमोक्रेसी है आबाद
फिर भी लड़ना क्यूँ पड़ता है, क्यूँ करनी पड़ती फ़रियाद
साबुन लेके हाथ में निकले, सिस्टम को है धोना रे
हम तो अपनी बावड़ी लेंगे
बावड़ी हमको होना रे
बावड़ी बावड़ी बाव बावड़ी

अटक के ले ले, भटक के ले ले
ले झटक के ले ले, अपना हक
सारी दुनिया हाथ में होगी, क्यूँ लाता है मनन में शक
बारिश की नींद बरस जा
फसले तुझको बोना रे
हम तो अपनी बावड़ी लेंगे
बावड़ी हमको होना रे

नको नको हीरा मोती, नहीं बोना सोना रे
हम तो अपनी बावड़ी लेंगे
बावड़ी हमको होना रे
धूम तारा धूम तारा धूम तारा धूम तारा रे
अरे हम तोह अपनी बावड़ी लेंगे
बावड़ी हमको होना रे
बावड़ी बावड़ी बाव बावड़ी

फिल्म "वेल डन अब्बा" का ये गीत आम आदमी की आवाज़ को बुलंद करता है और आम आदमी की ताकत को दिखता है.